भारत के इतिहास मे आज भी ऐसे लोगो का बोल-बाला हे जो ख़ुद अमर हो गए और हमे दिला गये नई आज़ादी मैंने वह तीर्थ स्थल देखा हे जिसे लोग देखकर भी भूल जाते हैं जी हाँ मैं हापुड़ के उस बस अड्डे के सामने पीपल के
पुराने पेड़ की ही बात कर रहा हूँ जहाँ 1857 मे तात्या टोपे को फांसी दी गई थी /उस वीर का स्मरण कर कुछ पंक्ति
लिखने का प्रयास किया हे आशा हे आप के मन पर जरुर दस्तक देंगी /
देखो वो दरख्त वीर जिनपे शहीद हुए
देखोगे किताबों की कहानी जाग जायेगी
आज भी वहीं है वो निशानी मेरे भाई देखो
संघर्षों की बातें वो पुरानी जाग जायेगी
तात्या को दी थी जहाँ फांसी मेरे बंधू देखो
सोये तेरे मन मे भवानी जाग जायेगी
याद कर कुर्बानी मेला तो लगाओ कहीं
आज़ादी के सिंहो की जवानी जाग जायेगी
Thursday, May 22, 2008
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