भारत के इतिहास मे आज भी ऐसे लोगो का बोल-बाला हे जो ख़ुद अमर हो गए और हमे दिला गये नई आज़ादी मैंने वह तीर्थ स्थल देखा हे जिसे लोग देखकर भी भूल जाते हैं जी हाँ मैं हापुड़ के उस बस अड्डे के सामने पीपल के
पुराने पेड़ की ही बात कर रहा हूँ जहाँ 1857 मे तात्या टोपे को फांसी दी गई थी /उस वीर का स्मरण कर कुछ पंक्ति
लिखने का प्रयास किया हे आशा हे आप के मन पर जरुर दस्तक देंगी /
देखो वो दरख्त वीर जिनपे शहीद हुए
देखोगे किताबों की कहानी जाग जायेगी
आज भी वहीं है वो निशानी मेरे भाई देखो
संघर्षों की बातें वो पुरानी जाग जायेगी
तात्या को दी थी जहाँ फांसी मेरे बंधू देखो
सोये तेरे मन मे भवानी जाग जायेगी
याद कर कुर्बानी मेला तो लगाओ कहीं
आज़ादी के सिंहो की जवानी जाग जायेगी
Thursday, May 22, 2008
Wednesday, February 20, 2008
एक ग़ज़ल िजन्दगी
राज की बात करते थे जो अजनबी
गहरा उनसे बहुत दोस्ताना हुआ
प्यार की बात में वो किशश न रही
जब से िरश्ता हमारा पुराना हुआ
यकीन िदल को िदलाएं तो कैसे कहें
गम मोह्बत्त का सबसे सुहाना हुआ
दोस्तो की तलाश में िफरते रहे
जब से दुश्मन हमारा जमाना हुआ
तोड़ जाते जो िरश्तों को धागा समझ
उनका सागर क्यूं इतना दीवाना हुआ
गहरा उनसे बहुत दोस्ताना हुआ
प्यार की बात में वो किशश न रही
जब से िरश्ता हमारा पुराना हुआ
यकीन िदल को िदलाएं तो कैसे कहें
गम मोह्बत्त का सबसे सुहाना हुआ
दोस्तो की तलाश में िफरते रहे
जब से दुश्मन हमारा जमाना हुआ
तोड़ जाते जो िरश्तों को धागा समझ
उनका सागर क्यूं इतना दीवाना हुआ
प्रेम किव की कल्पना
कामनी साँवरी वह रंग रूप की अपसरा
मैं मन मोदक एक प्रेम किव की कल्पना
देंखू तब मन भावन जब,बात करूं तो तड़पन
जावन कैसे िप्रयेतम संग िमलने मे है अड़चन
तुम ही बताओ िप्रये सखा मेरे मन कैसे बहलाऊँ
दूर बहूत है सजनी मेरी कैसे िमलने जाऊं
या पार कभी वा पार कभी मैं भटकता रहता हूँ
आओगे कब बाहर स्वपन से मैं सोचता रहता हूँ
बस इस सूखी डाली पर हरयाली सी छा जाए
स्वपन इतना देख रहा हूँ तू स्वपन से आ जाए
मैं मन मोदक एक प्रेम किव की कल्पना
देंखू तब मन भावन जब,बात करूं तो तड़पन
जावन कैसे िप्रयेतम संग िमलने मे है अड़चन
तुम ही बताओ िप्रये सखा मेरे मन कैसे बहलाऊँ
दूर बहूत है सजनी मेरी कैसे िमलने जाऊं
या पार कभी वा पार कभी मैं भटकता रहता हूँ
आओगे कब बाहर स्वपन से मैं सोचता रहता हूँ
बस इस सूखी डाली पर हरयाली सी छा जाए
स्वपन इतना देख रहा हूँ तू स्वपन से आ जाए
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